


भारत का ड्रोन सेक्टर आजकल चर्चा में है। इसकी वजह है 'ऑपरेशन सिंदूर'। इस ऑपरेशन के बाद से ही भारत में ड्रोन तकनीक पर जोर दिया जा रहा है। ड्रोन हल्के होते हैं और ये दुश्मन के इलाके में दूर तक जा सकते हैं। ये जासूसी भी कर सकते हैं और हमला भी। इसलिए, माना जा रहा है कि भविष्य में ड्रोन ही युद्ध में काम आएंगे। भारत अब इस मामले में आत्मनिर्भर बनना चाहता है। भारतीय सेना ने हाल ही में कुछ घरेलू कंपनियों को 295 करोड़ रुपये के दो ऑर्डर दिए हैं। ये ऑर्डर छोटे ड्रोन और निगरानी करने वाले ड्रोन के लिए हैं।
ड्रोन के दो ऑर्डर की अलग-अलग अहमियत
ड्रोन आज के युद्ध में सबसे नए हथियार बन गए हैं। हमने रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास संघर्ष, 'ऑपरेशन सिंदूर' और हाल ही में ईरान-इजरायल युद्ध में भी ड्रोन का इस्तेमाल देखा है। सेना के दो ऑर्डर में से पहला ऑर्डर नागपुर की कंपनी सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड को मिला है। यह ऑर्डर 158 करोड़ रुपये का है और इससे 450 'नागास्त्र-1आर' ड्रोन खरीदे जाएंगे। इन ड्रोन को 'कामिकेज ड्रोन' भी कहा जाता है। ये रात में भी काम कर सकते हैं। दूसरा ऑर्डर आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी को मिला है। यह 137 करोड़ रुपये का ऑर्डर है।
अगली पीढ़ी की रक्षा तकनीक पर सेना का जोर
'नागास्त्र' और वीटीओएल वाले यूएवी पहले से ही सेना के पास हैं। इनका इस्तेमाल 7 से 10 मई के बीच पाकिस्तान के साथ हुई झड़पों में किया गया था। 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद से इस सेक्टर में बहुत तेजी आने वाली है। सरकार स्वदेशी ड्रोन, अनमैन्ड कॉम्बैट एयर सिस्टम और काउंटर ड्रोन सिस्टम को और भी बेहतर बनाने के लिए तेजी से काम कर रही है।